शीर्षक: भारतीय दंड संहिता (IPC) और भारतीय न्याय संहिता (BNS) में अंतर — न्यायालय की पाठशाला की रिपोर्ट
भारत के आपराधिक कानून में वर्ष 2023 में बड़ा परिवर्तन किया गया। सरकार ने औपनिवेशिक काल से लागू भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) को हटाकर उसकी जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) लागू की। यह बदलाव केवल धाराओं का संशोधन नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था की दिशा और सोच में परिवर्तन का प्रतीक है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) का निर्माण ब्रिटिश शासन के समय हुआ था। उस दौर में इसका उद्देश्य कानून-व्यवस्था बनाए रखना और शासन की सत्ता को मजबूत करना था। इसमें अपराध के लिए कठोर दंड का प्रावधान था।
दूसरी ओर, भारतीय न्याय संहिता (BNS) का उद्देश्य केवल अपराधी को सजा देना नहीं बल्कि पीड़ित को न्याय दिलाना और समाज में सुधार लाना है। यह कानून भारतीय संविधान की भावना और नागरिक अधिकारों के अनुरूप बनाया गया है।
IPC में कुल 511 धाराएँ थीं, जबकि BNS में इन धाराओं को घटाकर 358 किया गया है।
BNS में कई पुरानी और दोहराई जाने वाली धाराएँ हटा दी गई हैं, जिससे कानून अधिक सरल और स्पष्ट हो गया है।
IPC की भाषा जटिल अंग्रेज़ी में थी, जबकि BNS को अधिक सहज और भारतीय भाषाओं के अनुरूप लिखा गया है ताकि आम व्यक्ति भी इसे समझ सके।
1. देशद्रोह कानून (Sedition Law):
IPC की धारा 124A के तहत देशद्रोह को अपराध माना गया था, जिसका दुरुपयोग कई बार हुआ।
BNS में इस धारा को हटाकर इसके स्थान पर “भारत की संप्रभुता और अखंडता के विरुद्ध कृत्य” से जुड़ा नया प्रावधान जोड़ा गया है।
2. मॉब लिंचिंग:
IPC में मॉब लिंचिंग के लिए कोई अलग धारा नहीं थी।
BNS में इसे एक गंभीर अपराध माना गया है और इसके लिए कठोर सजा का प्रावधान किया गया है।
3. संगठित अपराध:
IPC में संगठित अपराध की स्पष्ट परिभाषा नहीं थी।
BNS में माफिया, गिरोहबाज़ी और संगठित अपराधों के लिए विशेष प्रावधान जोड़े गए हैं।
4. सामुदायिक सेवा:
BNS में पहली बार “सामुदायिक सेवा” को दंड के एक विकल्प के रूप में जोड़ा गया है। यह सुधारात्मक न्याय की दिशा में कदम माना जा रहा है।
5. डिजिटल साक्ष्य और तकनीकी प्रावधान:
BNS में डिजिटल अपराधों और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को विशेष महत्व दिया गया है। अब ई-मेल, संदेश, वीडियो और जीपीएस डेटा जैसे इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणों को न्यायालय में स्वीकार किया जाएगा।
| विषय | IPC धारा | BNS धारा | परिवर्तन |
|---|---|---|---|
| हत्या | 302 | 101 | परिभाषा अधिक स्पष्ट |
| हत्या का प्रयास | 307 | 111 | दंड प्रक्रिया में सुधार |
| बलात्कार | 375 | 63 | सहमति की परिभाषा अद्यतन |
| अपहरण | 359–369 | 136–144 | धाराएँ जोड़ी और सरल की गईं |
| चोरी | 378 | 303 | भाषा और दंड का सरलीकरण |
| देशद्रोह | 124A | हटाई गई | नया प्रावधान “संप्रभुता के विरुद्ध कार्य” |
BNS के साथ लागू भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) ने आपराधिक प्रक्रिया में समयबद्धता लाई है। अब जांच और मुकदमे की प्रक्रिया के लिए निश्चित समय सीमा तय की गई है।
गंभीर अपराधों के मामलों में फॉरेंसिक टीम की अनिवार्य उपस्थिति का प्रावधान है।
ऑनलाइन एफआईआर और वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे डिजिटल साधनों को भी मान्यता दी गई है।
BNS के लागू होने से नागरिकों को कानून से जुड़ी प्रक्रियाएँ अधिक पारदर्शी और सुलभ होंगी।
अब कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों और अपराधों से संबंधित कानून को आसानी से समझ सकता है।
न्याय में देरी को रोकने के लिए प्रावधान किए गए हैं और पीड़ितों को शीघ्र न्याय देने की दिशा में काम किया गया है।
IPC ब्रिटिश सोच पर आधारित था, जबकि BNS भारतीय समाज, संस्कृति और संवैधानिक मूल्यों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। यह कानून भारत के नागरिकों की वास्तविक परिस्थितियों और सामाजिक ताने-बाने से मेल खाता है।
| बिंदु | IPC (1860) | BNS (2023) |
|---|---|---|
| कुल धाराएँ | 511 | 358 |
| भाषा | जटिल अंग्रेज़ी | सरल भारतीय भाषा |
| देशद्रोह कानून | था | हटाया गया |
| मॉब लिंचिंग | नहीं | शामिल |
| सामुदायिक सेवा | नहीं | शामिल |
| डिजिटल साक्ष्य | सीमित | विस्तृत |
| दर्शन | दंडात्मक | सुधारात्मक |
| उद्देश्य | शासन नियंत्रण | नागरिक न्याय |
भारतीय दंड संहिता ने भारत में आपराधिक कानून की नींव रखी थी, लेकिन समय के साथ उसमें सुधार की आवश्यकता महसूस की गई। भारतीय न्याय संहिता ने इस आवश्यकता को पूरा किया है।
यह कानून न्याय प्रणाली को आधुनिक, तकनीकी और नागरिक-केंद्रित बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।
अब भारतीय कानून केवल शासन का उपकरण नहीं बल्कि नागरिकों के अधिकार और न्याय का माध्यम बन गया है।
लेख स्रोत: न्यायालय की पाठशाला
रिपोर्टर: अधिवक्ता करण निकुंभ
(कानूनी शिक्षा और न्यायिक सुधारों पर विशेष रिपोर्ट)